बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 चित्रकला प्रथम प्रश्नपत्र बीए सेमेस्टर-3 चित्रकला प्रथम प्रश्नपत्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 चित्रकला प्रथम प्रश्नपत्र
प्रश्न- गांधार कला पर टिप्पणी लिखिए।
अथवा
गांधार कला पर प्रकाश डालिए।
उत्तर -
कुषाण काल में मथुरा कला शैली के अतिरिक्त पश्चिमोत्तर भारत में गांधार क्षेत्र में एक नवीन कला शैली का विकास हुआ, जिसे गांधार शैली कहा जाता है। गांधार में तक्षशिला, पुष्कलावती, स्वातघाटी या उद्यान, कपिशा, बमियान, बैक्ट्रिया आदि क्षेत्र विशेषरूप से उल्लेखनीय हैं। प्राचीनकाल में उत्तरापंथ मार्ग मथुरा से शाकल, तक्षशिला, पुष्कलावती, नगरहार और कपिशा होता हुआ बाह्वीक (बैक्ट्रिया) तक जाता था। कुषाण नरेश कनिष्क के समय यह मार्ग पुरुषपुर (पेशावर) से भी जुड़ गया था।
सिकन्दर के बाद इस क्षेत्र में यूनानी बस्तियाँ तो थी हीं, आगे चलकर बैक्ट्रिया के यवनों ने भी इस क्षेत्र में अपना अधिकार और शासन स्थापित किया था। कनिष्क के समय गांधार से लेकर मथुरा तक का विस्तृत भू-भाग व्यापारिक और सांस्कृतिक गतिविधियों से निरन्तर विकसित हो रहा था। इस युग में गांधार की सीमाएँ पूर्व में चीन से, उत्तर में मध्य एशिया से और पश्चिम में सीरिया, पार्थिया से जा मिली थी। व्यापारिक संघर्ष से खान-पान, वेश-भूषा, भाषा और धर्म एक- दूसरे पर अपना प्रभाव डालते हैं। यही उस काल में धर्म के क्षेत्र में हुआ। सम्पूर्ण गांधार क्षेत्र बौद्ध धर्म से अनुप्राणित हुआ। परिणामस्वरूप वहाँ की कला में भी इसका प्रभाव पड़ना स्वाभाविक था।
कुषाणकाल में गांधार क्षेत्र में बसे यूनानी कलाकारों ने बुद्ध, बोधिसत्त्व तथा अन्य बौद्ध देवी-देवताओं की मूर्तियों का निर्माण किया। प्रस्तर- फलकों पर उन्होंने बुद्ध के जीवन तथा उनके धर्म की मुख्य घटनाओं को रूपायित किया। इनमें जातक कथाओं के दृश्य, माया देवी की लुम्बिनीवन-यात्रा, बुद्ध-जन्म, महाभिनिष्क्रमण, सम्बोधि, धर्मचक्र प्रवर्तन, महापरिनिर्वाण, बौद्ध देवी-देवता, माया, गौतमी प्रजापति, ब्रह्मा, शक्र, मार, कुबेर, व्यान्तर देवता तथा अन्य भारतीय विदेशी सज्जा - अलंकरण उल्लेखनीय हैं। इस प्रकार गांधार कला में बौद्ध कला का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है।
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